News Agency : आम चुनाव हैं, तो खास सर्वे तो होंगे ही, इस बार भी हो रहे हैं, लेकिन इन सर्वे पर नजर डालें तो यह बात साफ है कि- या तो नरेन्द्र मोदी को सियासी धोखा दिया जा रहा है, या फिर सर्वे के नाम पर अप्रत्यक्ष चुनाव प्रचार चल रहा है?विभिन्न सर्वे बता रहे हैं कि लोस सीटें जीतने के मामले में एनडीए बहुत आगे और बहुमत के करीब है, मतलब… केन्द्र में अगली सरकार भी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बनेगी, लेकिन कैसे?
क्या बीजेपी को राजस्थान में twenty five में से twenty five सीटें मिल जाएंगी, गुजरात में twenty six में से twenty six, एमपी में twenty nine में से twenty seven, यूपी में eighty में से seventy one, झारखंड में fourteen में से thirteen, छत्तीसगढ़ thirteen में से nine सीटें मिल जाएंगी? यदि नहीं, तो यह तो साफ है कि 2014 की तरह बीजेपी अकेले दम पर तो बहुमत- 272 सीट, हांसिल नहीं कर पाएगी?
जाहिर है, सर्वे के हिसाब से भी यदि एनडीए को सीटें मिल जाती हैं, तो भी बीजेपी बहुमत जैसी सरकार (2014-19) तो नरेन्द्र मोदी नहीं चला पाएंगे! यह भी हो सकता है कि नतीजों के बाद सहयोगी दलों के तेवर ही बदल जाएं? शिवसेना नेता संजय राउत ने तो कहा भी है कि- यदि बीजेपी 2014 से a hundred सीटें कम जीतती है तो प्रधानमंत्री कौन होगा, यह एनडीए तय करेगा? बहुमत के बावजूद शिवसेना, पीएम मोदी सरकार पर जिस तरह से निशाना साधती रही है, आगे मोदी क्या करेंगे?
इन सर्वे से यह साफ है कि इस बार बीजेपी को 2014 जैसा समर्थन नहीं मिल पाएगा, यही नहीं, बीजेपी की 2014 में जीती हुई बिहार, राजस्थान की करीब आधा दर्जन सीटें तो पहले ही कम हो चुकी हैं? जहां बिहार में पिछली बार बीजेपी ने twenty two सीटें जीती थी, इस बार केवल seventeen सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जीतेगी कितनी? राजस्थान में मिशन- twenty five, मिशन- twenty four में बदल चुका है?
वर्ष 2014 के चुनाव में बीजेपी एकजुट थी, लेकिन इस बार बागी तो चुनाव मैदान में हैं ही, पार्टी के भीतर भी मोदी-शाह से नाराज नेताओं की कमी नहीं है! पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान जैसे नेता कितनी आक्रमकता के साथ लोस चुनाव में सक्रिय हैं, यह जगजाहिर है? वर्तमान बीजेपी नेतृत्व से नाराज नेताओं, कार्यकर्ताओं की उदासीनता कितनी असरदार है, यह भी चुनावी नतीजों में साफ हो जाएगा!
बीजेपी को सबसे बड़ा सियासी खतरा मध्यम वर्ग से है? यह बीजेपी का सबसे बड़ा समर्थक वर्ग है, लेकिन इसके लिए केन्द्र की मोदी सरकार ने न तो कोई योजना बनाई और न ही कोई लाभ दिया, जबकि नोटबंदी, जीएसटी से लेकर विभिन्न टैक्स, पेट्रोल-डीजल के रेट जैसे आर्थिक झटके इसी वर्ग के हिस्से में आए हैं! बेरोजगारी की समस्या से भी यही वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित है? हालांकि, प्रचारतंत्र का ही कमाल है कि सबसे ज्यादा नुकसान उठाने के बावजूद इस वर्ग का बड़ा हिस्सा अभी भी मोदी का समर्थन कर रहा है!
अलबत्ता, सामान्य वर्ग का 2014 जैसा समर्थन मोदी को इस बार मिलना मुश्किल है?दरअसल, विभिन्न सर्वे के माध्यम से या तो नरेन्द्र मोदी को सियासी अंधेरे में रखा जा रहा है या फिर सर्वे के नाम पर अप्रत्यक्ष चुनाव प्रचार चल रहा है, ताकि कार्यकर्ताओं में जोश और जनता में राजनीतिक धारणा बनी रहे कि मोदी फिर से प्रधानमंत्री बन रहे हैं!